वैद्य भगवान दाश ने आयुर्वेद में स्नातकोत्तर करने के साथ-साथ संस्कृत में स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट की डिग्रियाँ भी प्राप्त की। आयुर्वेद की चिकित्सा और अनुसन्धान क्षेत्र में जीवन के 40 वर्षों से अधिक का अमूल्य समय समर्पित कर चुके वैद्य भगवान दाश ने ब्राजील, मैक्सिको, फ्रांस, अमेरिका, इटली आदि देशों में अनेकों अन्तर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेन्सों एवं सेमीनारों में भाग लिया। आपने दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में एडीलेड के ‘ऑस्ट्रेलिया स्कूल ऑफ आयुर्वेद, में अध्यापन कार्य भी किया। सम्प्रति इटली में भी आयुर्वेद का अध्यापन कर रहे हैं। आयुर्वेद के अतिरिक्त तिब्बती चिकित्सा पद्धति में भी आपने गहन शोधकार्य किये हैं। 50 से भी अधिक महत्वपूर्ण ग्रन्थों के लेखन के अतिरिक्त आयुर्वेद के सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रन्थ ‘चरक-संहिता का अंग्रेजी भाषा में टीका सहित अनुवाद का श्रेय भी आपको है। आप भारत-सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मन्त्रालय में आयुर्वेद विभाग के डिप्टी-एडवाइजर के पद को भी अलंकृत कर चुके हैं। आयुर्वेद के अनुसन्धान एवं शैक्षणिक क्षेत्र में अधिकाधिक सेवाएं समर्पित करने के उद्देश्य से आपने सन् 1981 में ऐच्छिक अवकाश (रिटायरमैण्ट) प्राप्त कर लिया। विश्व स्वास्थ्य संगठन में पारम्परिक चिकित्सा-प्रणाली के परामर्शदाता के रूप में आपने स्वास्थ्य-विस्तार से सम्बन्धित कार्यक्रम के विषय का अध्ययन करने एवं परामर्श प्रदान करने के उद्देश्य से बॉग्लादेश, भूटान, बर्मा, और मंगोलिया जैसे देशों में भी अनेक बार यात्राएँ की। स्वास्थ्य एवं मानव-कल्याण के प्रति आपके बहुमूल्य योगदान को देखते हुए अभी हाल ही में 15 अक्तूबर, 1995 को आपको ‘पायो मान्जू सैण्टर के द्वारा प्रेसीडेन्सी ऑफ द इटैलियन रिपब्लिक, सीनेट, चैम्बर ऑफ डिप्टीज एण्छ कैबीनेट के स्वर्णपदक से सम्मानित किया गया है। प्रो० माइकेल (आचार्य मैनफ्रेड एम. जूनियस) आप दक्षिण ऑस्ट्रेलिया एडेलेड में ऑस्ट्रेलियन स्कूल ऑफ आयुर्वेद के प्रधान हैं। भारतीय संगीत एवं भारतीय भाषाओं के विद्वान् आचार्य मैनफ्रेड ने ‘रसशास्त्र’ एवं ‘वानस्पतिक औषधियों’ पर भी अनेक पुस्तकों की रचना की है।