तस्वीर ज़माने की
वर्तमान परिवेश में जहाँ व्यक्ति विकास की ऊँचाइयों को छूने का प्रयास करता जा रहा है, वहीं समाज में विद्यमान दूषित मनोभाव कई सामाजिक कुरीतियों व विषमताओं को जन्म देते हैं। इन कुरीतियों के कारण समाज में दहेज़ प्रथा, नशाखोरी, भ्रूण हत्या व बलात्कार जैसे सामाजिक अपराधों की बहुतायत देखने में अक्सर आती रहती है। समाज में सम्पन्न वर्ग जिसे अपने शौक़ के रूप में इस्तेमाल करता है वहीं ग़रीब व बेसहारा वर्ग के लिये यह बर्बादी व मजबूरी के रूप में देखने को मिलता है इसी प्रकार भारत देश स्वतंत्र एवं गणतंत्र होने के बावजूद भी पड़ोसी देशों की वैमनस्यता व दुश्मनी के कारण असुरक्षित है, सुरक्षा में तैनात हमारे वीर सिपाहियों की आये दिन शहादत निश्चित रूप से उन पर आश्रित परिवारजनों के भविष्य को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। इसी सामाजिक दर्द के एहसास ने मनोभावों में हलचल पैदा कर कलम उठाने को मजबूर कर दिया है। काग़ज़ व क़लम उठाकर लिखते समय न जाने कितनी बार अश्रुपात हुआ। आँखें नम व हृदय द्रवित होता रहा। ज़माने की कई तस्वीर मानस ल पर उभरतीं व मिटती रहीं, परन्तु उनकी परछाइयाँ धुँधली छवि के रूप में सदैव विद्यमान रहीं। 'तस्वीर ज़माने की' रचना संग्रह आपके बीच सौंपकर समाज के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन करता एक सूक्ष्म प्रयास है, अपनों के प्यार, दुलार व शुभाशीष की अपेक्षाओं की प्रतीक्षा में। आपका संतोष त्रिपाठी.
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तस्वीर ज़माने की
वर्तमान परिवेश में जहाँ व्यक्ति विकास की ऊँचाइयों को छूने का प्रयास करता जा रहा है, वहीं समाज में विद्यमान दूषित मनोभाव कई सामाजिक कुरीतियों व विषमताओं को जन्म देते हैं। इन कुरीतियों के कारण समाज में दहेज़ प्रथा, नशाखोरी, भ्रूण हत्या व बलात्कार जैसे सामाजिक अपराधों की बहुतायत देखने में अक्सर आती रहती है। समाज में सम्पन्न वर्ग जिसे अपने शौक़ के रूप में इस्तेमाल करता है वहीं ग़रीब व बेसहारा वर्ग के लिये यह बर्बादी व मजबूरी के रूप में देखने को मिलता है इसी प्रकार भारत देश स्वतंत्र एवं गणतंत्र होने के बावजूद भी पड़ोसी देशों की वैमनस्यता व दुश्मनी के कारण असुरक्षित है, सुरक्षा में तैनात हमारे वीर सिपाहियों की आये दिन शहादत निश्चित रूप से उन पर आश्रित परिवारजनों के भविष्य को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। इसी सामाजिक दर्द के एहसास ने मनोभावों में हलचल पैदा कर कलम उठाने को मजबूर कर दिया है। काग़ज़ व क़लम उठाकर लिखते समय न जाने कितनी बार अश्रुपात हुआ। आँखें नम व हृदय द्रवित होता रहा। ज़माने की कई तस्वीर मानस ल पर उभरतीं व मिटती रहीं, परन्तु उनकी परछाइयाँ धुँधली छवि के रूप में सदैव विद्यमान रहीं। 'तस्वीर ज़माने की' रचना संग्रह आपके बीच सौंपकर समाज के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन करता एक सूक्ष्म प्रयास है, अपनों के प्यार, दुलार व शुभाशीष की अपेक्षाओं की प्रतीक्षा में। आपका संतोष त्रिपाठी.
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Product Details
ISBN-13: | 9789386619747 |
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Publisher: | Redgrab Books Pvt Ltd |
Publication date: | 07/29/2021 |
Pages: | 148 |
Product dimensions: | 5.50(w) x 8.50(h) x 0.32(d) |
Language: | Hindi |
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