प्रस्तुत पुस्तक संताप से समाधि की ओर अग्रसित होते हुए एक ऐसे अभिशप्त यायावर का यात्रा वृत्तांत चित्रित करती है जो आजीवन संघर्षरत रहते हुए भी कर्म, ज्ञान और भक्ति की त्रिवेणी में डुबकी लगाता रहा-इस संकल्प के साथ कि उसके मन मानस में सतत् सविनोदय सुख-दु:ख के महामंथन से अन्ततोगत्वा कुछ अमृतबिंदु प्राप्त हो सकेंगे, जिन्हें वह भावी पीढ़ी के सुखद् भविष्य हेतु समर्पित कर सकेगा। जीवन के यथार्थ से परिचय कराता हुआ यह ग्रंथ सांसारिक, दार्शनिक एवम् आध्यात्मिक तत्वों का समायोजन प्रस्तुत करता है। साथ ही, इसमें मानव जीवन का मर्म, ईश्वरीय सत्ता और उसके स्वरूप, आत्मा, आदर्श, सनातन प्रश्न, आत्मानुभूतियों, इहलोक लीला तथा मानव की अंतिम यात्रा का तथ्यात्मक वर्णन है। इस पुस्तक के प्रणेता ने अपनी जीवन गाथा के ‘पूर्ण विराम से पूर्व’ अंतिम सन्देश के रूप में मानव जाति को जो भावात्मक भेंट प्रस्तुत की है वह नि:संदेह ही एक सार्थक प्रयास है जिसका सुविज्ञ पाठक सस्नेह स्वागत करेंगे, इस विश्वास के साथ यह रचना ‘सर्वजन हिताय’ समर्पित है।