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आदिवासी बहुल ग्रामों में विभिन्न आंतरिक एवं बाह्य, शासकीय एवं गैर-शासकीय हस्तक्षेपों के कारण रहवासियों के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में परिवर्तन परिलक्षित हो रहा है। परंतु यह परिवर्तन निरंतरता एवं परिवर्तन दोनों के मद्देनजर हो रहा है। परिवर्तन का स्वरूप सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों हैं। सकारात्मक परिवर्तन की गति तो तेज है परंतु इसका फल न तो समावेशी है और न ही टिकाऊ। इस पुस्तक में चार आदिवासी बहुल ग्रामों में हो रहे ऐसे ही विकास एवं परिवर्तन का विश्लेषण तृणमूल स्तर पर किए गए शोध पर आधारित है। इस अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि पहले की तुलना में विकास की गति में तेजी आयी है। यह तेजी ग्राम स्तर के साथ-साथ काफी आदिवासियों के व्यक्तिगत जीवन में भी हो रही है। और अगर विकास योजनाओं एवं प्रक्रियाओं को व्यवस्थित ढंग से प्रबंधित एवं क्रियान्वित किया गया तो निश्चित तौर पर विकास का फल समावेशी एवं टिकाऊ होगा। यह पुस्तक उन समस्त विद्यार्थियों, शोधार्थियों, नीति-निर्धारकों तथा गैर-सरकारी संगठनों के लिए लाभकारी होगी जो जनजातियों को समझने एवं उनके विकास के कामों में लगे हैं।
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आदिवासी बहुल ग्रामों में विभिन्न आंतरिक एवं बाह्य, शासकीय एवं गैर-शासकीय हस्तक्षेपों के कारण रहवासियों के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में परिवर्तन परिलक्षित हो रहा है। परंतु यह परिवर्तन निरंतरता एवं परिवर्तन दोनों के मद्देनजर हो रहा है। परिवर्तन का स्वरूप सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों हैं। सकारात्मक परिवर्तन की गति तो तेज है परंतु इसका फल न तो समावेशी है और न ही टिकाऊ। इस पुस्तक में चार आदिवासी बहुल ग्रामों में हो रहे ऐसे ही विकास एवं परिवर्तन का विश्लेषण तृणमूल स्तर पर किए गए शोध पर आधारित है। इस अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि पहले की तुलना में विकास की गति में तेजी आयी है। यह तेजी ग्राम स्तर के साथ-साथ काफी आदिवासियों के व्यक्तिगत जीवन में भी हो रही है। और अगर विकास योजनाओं एवं प्रक्रियाओं को व्यवस्थित ढंग से प्रबंधित एवं क्रियान्वित किया गया तो निश्चित तौर पर विकास का फल समावेशी एवं टिकाऊ होगा। यह पुस्तक उन समस्त विद्यार्थियों, शोधार्थियों, नीति-निर्धारकों तथा गैर-सरकारी संगठनों के लिए लाभकारी होगी जो जनजातियों को समझने एवं उनके विकास के कामों में लगे हैं।
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Overview

आदिवासी बहुल ग्रामों में विभिन्न आंतरिक एवं बाह्य, शासकीय एवं गैर-शासकीय हस्तक्षेपों के कारण रहवासियों के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में परिवर्तन परिलक्षित हो रहा है। परंतु यह परिवर्तन निरंतरता एवं परिवर्तन दोनों के मद्देनजर हो रहा है। परिवर्तन का स्वरूप सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों हैं। सकारात्मक परिवर्तन की गति तो तेज है परंतु इसका फल न तो समावेशी है और न ही टिकाऊ। इस पुस्तक में चार आदिवासी बहुल ग्रामों में हो रहे ऐसे ही विकास एवं परिवर्तन का विश्लेषण तृणमूल स्तर पर किए गए शोध पर आधारित है। इस अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि पहले की तुलना में विकास की गति में तेजी आयी है। यह तेजी ग्राम स्तर के साथ-साथ काफी आदिवासियों के व्यक्तिगत जीवन में भी हो रही है। और अगर विकास योजनाओं एवं प्रक्रियाओं को व्यवस्थित ढंग से प्रबंधित एवं क्रियान्वित किया गया तो निश्चित तौर पर विकास का फल समावेशी एवं टिकाऊ होगा। यह पुस्तक उन समस्त विद्यार्थियों, शोधार्थियों, नीति-निर्धारकों तथा गैर-सरकारी संगठनों के लिए लाभकारी होगी जो जनजातियों को समझने एवं उनके विकास के कामों में लगे हैं।

Product Details

ISBN-13: 9789355944214
Publisher: Concept Publishing Company Pvt. Ltd.
Publication date: 06/30/2013
Sold by: Barnes & Noble
Format: eBook
Pages: 278
File size: 4 MB
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