Lagta Nahin hai dil mera ujde dayar mein

Lagta Nahin hai dil mera ujde dayar mein

by Bahadur Shah Zafar
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Lagta Nahin hai dil mera ujde dayar mein

by Bahadur Shah Zafar

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Overview

बहादुर शाह ज़फ़र भारत में मुग़ल साम्राज्य के अंतिम बादशाह और उर्दू के जाने-माने शायर थे। उन्होंने 1857 ई.का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सिपाहियों का नेतृत्व किया था। युद्ध में पराजय के बाद अंग्रेज़ों ने उन्हें बर्मा (म्यांमार) भेज दिया जहाँ उनकी मृत्यु हुई। ज़फ़र को गिरफ़्तार करते समय अंग्रेज़ अधिकारी मेजर हडसन (जो उर्दू का थोड़ा ज्ञान रखता था) ने कहा "दमदमे में दम नहीं है खैर माँगों जान की.. ऐ ज़फ़र ठंडी हुई अब तेग हिन्दुस्तान की.." इस पर ज़फ़र ने उत्तर देते हुए कहा "ग़ज़ियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की.. तख़्त ऐ लंदन तक चलेगी तेग हिन्दुस्तान की.." ज़फ़र का जन्म 24 अक्टूबर, 1775 ई. में हुआ था। उनके पिता अकबर शाह द्वितीय और माँ लाल बाई थीं। अपने पिता की मृत्यु के उपरांत ज़फ़र को 28 सितम्बर, 1837 ई. में मुग़ल बादशाह बनाया गया। बहादुर शाह ज़फ़र सिर्फ़ एक देशभक्त मुग़ल बादशाह ही नहीं बल्कि उर्दू के मशहूर कवि भी थे। उन्होंने बहुत-सी मशहूर उर्दू कविताएँ लिखीं। जिनमें से काफ़ी अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ बगावत के समय के समय मची उथल-पुथल के दौरान खो गई या नष्ट हो गई। देश से बाहर रंगून में भी उनकी उर्दू कविताओं का जलवा जारी रहा। वहाँ उन्हें हर वक्त हिन्दुस्तान की फ़िक्र रही। उनकी अंतिम इच्छा थी कि वह अपने जीवन की आख़िरी साँस हिन्दुस्तान में ही लें और वहीं उन्हें दफ़नाया जाए लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। रंगून में ही उन्होंने 7 नवंबर, 1862 ई. में एक बंदी के रूप में दम तोड़ा। बादशाह ज़फ़र ने जब रंगून में कारावास के दौरान अपनी आख़िरी साँस ली तो शायद उनके लबों पर अपनी ही मशहूर ग़ज़ल का यह शेर ज़रूर रहा होगा- "कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ्न के लिए, दो गज जमीन भी न मिली कू-ए-यार में।"

Product Details

ISBN-13: 9789393193131
Publisher: Prabhakar Prakashan Private Limited
Publication date: 03/08/2022
Pages: 74
Product dimensions: 4.72(w) x 7.48(h) x 0.18(d)
Language: Hindi
From the B&N Reads Blog

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